हमारा समाज

भगवान विश्वकर्मा परिचय

विश्वकर्मा केवल एक नाम ही नहीं है बल्कि कर्म और निर्माण का प्रतीक है जिसका उल्लेख साहित्य, वेदों, शास्त्रों, पुराणों, उपनिषद व अन्य धर्म ग्रंथों में मिलता है । विराट विश्वकर्मा का उल्लेख स्रष्टि के आरम्भ से ही मिलता है । वह अजन्मा, आदि, अनंत, सचिदानंद रूप है तथा विश्वकर्मा ही विराट स्वरुप है । धार्मिक ग्रंथों से पता चलता है कि स्रष्टि निर्माण विराट विश्वकर्मा द्वारा ही किया गया है । प्रलय के बाद विराट विश्वकर्मा द्वारा पुन: पुन: स्रष्टि निर्माण किया गया और ईश्वर के रूप में प्रकट हुए । विश्व ब्रहम पुराण में उल्लेख है :-

न ब्रह्मा नैव विष्णुश्च न रुद्रो न च देवता ।
एक एक भवेद्विश्वकर्मा विश्वाभि देवता ।।

अर्थात न ब्रह्मा था न विष्णु था न रूद्र था (शिव ) तथा अन्य कोई भी देवता नहीं था उस सर्व शून्य प्रलय के समय समस्त ब्रह्माण्ड को अपने में लय किये हुए सबका पूज्य देव केवल एक ही विश्वकर्मा परमात्मा वर्तमान था । विश्वकर्मा को आदि, अनंत, सचिदानंद रूप परमेश्वर के रूप में निरूपित किया गया है ।

विश्वकर्मा का उल्लेख अमैथुनी स्रष्टि से पूर्व भी आया है तथा विश्वकर्मा जी को जगत का रचियता माना गया है । वेदों में भी विश्वकर्मा जी का उल्लेख मिलता है । विश्वकर्मा वेदों के मंत्र द्रष्टा ऋषि और देवता भी माने गए हैं । भगवान विश्वकर्मा ने अग्नि, जल, वायु, प्रथ्वी और आकाश पांच तत्वों से ही जगत की रचना की है ।

ॐ यो न: पिता जनिता यो विधाता धामानि वेद भुवनानि विश्वा ।
वो देवानां नाम धाएक एवतहसम्प्रश्नम भुवनायन्त्यन्या ।।

अर्थात हे मनुष्यों जो हमारा पालन पोषण करता है तथा जो सबको धारण करता है सबको कर्मानुसार फल देता है वह समस्त लोकों और जन्मस्थानों का ज्ञाता है अपनी विद्या से सबका नामकरण करता है वह एक ही ब्रह्मा अर्थात विश्वकर्मा है उस महा प्रभु को सब लोकस्थ पदार्थ प्राप्त होते हैं । वह पिता के समान सबका पालन पोषण करता है तथा विज्ञान से सबका निर्माण करता है ।

भगवान विश्वकर्मा आदि नारायण आदि देव परमपिता परमात्मा आदि अनंत अजन्मा है जो जन्म मरण से अलग हैं । फिर भी जिनकी हम कथा सुनते हैं अनेकों विश्वकर्मा हुए हैं उनमें सबसे हितकारी वसु पुत्र विश्वकर्मा हुए जिनका जन्म हम माघ शुदी त्रयोदशी को मानते हैं ।

विश्वेश्वराज्ञाय त्वाष्ट्रोलोकानाम हितकाम्यया ।
माघमासे रितेपक्षे त्रयोदश्याम शुभ दिने ।।

भगवान विश्वकर्मा के मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी, देवज्ञ या विश्वज्ञ पांच शिल्प प्रवर्तक पुत्र हुए ।

मनुर्मयस्त्वष्टा तक्षा शिल्पी च पंचम: ।
विश्वकर्मसुतानेतान विद्धि –शिल्प प्रवर्तकान ।।

मनुर्मयस्तथा तवष्टा शिल्पी देवज्ञ एव च ।
विश्वकर्मा सुता ह्येते पंच सृष्टि प्रवर्तका: ।।

मनु का विवाह महर्षि अंगिरा ऋषि की पुत्री कंचना से हुआ । मय का विवाह महर्षि पाराशर ऋषि की पुत्री सुलोचना से हुआ । तवष्टा का विवाह महर्षि कौशिक की पुत्री जयंती के साथ हुआ । शिल्पी का विवाह महर्षि भृगु की पुत्री कंरूणा से हुआ । देवज्ञ का विवाह महर्षि जैमिनी की पुत्री चन्द्रिका से हुआ ।

विश्वकर्मा पुत्री संज्ञा का विवाह सूर्य के साथ बताया गया है जिसके सज्ञा रूप से अश्वनी कुमार नाम के दो पुत्र पैदा हुये जो देव वैद्य के नाम से प्रसिद्द हुए तथा छाया रूप से यम यमी शनि नामवाली संतानें पैदा हुयीं । रिद्धि सिद्धि का विवाह पार्वती पुत्र गणेश के साथ हुआ जिससे क्षेम लाभ नामक संतानें उत्पन्न हुयीं ।

विश्वकर्मा वंशी को सर्व श्रेष्ट माना गया है । विश्वकर्मा वंशी धर्मज्ञ हैं उन्हें वेदों का ज्ञान है । समुद्र शास्त्र, गणित शास्त्र, ज्योतिष और भूगोल एवं खगोल शास्त्र में ये पारंगत है । शिल्प शास्त्र में तो ये कहा गया है कि विश्वकर्मा वंशी जन्म से ही ब्राह्मण हैं :-

विश्वकर्मा कुलेजाता गर्भ ब्राह्मण निश्चिता: ।
शूद्रत्वं नास्ति तद्वंशे ब्राह्मणा विश्वकर्मण: ।।

विश्वकर्मा वंशी सर्वोपरी पूजनीय है । शिल्पशास्त्र में कहा है कि यदि बहुत से वर्णों के लोग एक समूह में बैठे हों तो सबसे पहले शिल्पी को प्रणाम करना चाहिए ।

शुद्र कोटि सहस्त्रणामेक विप्र: प्रतिष्ठित: ।
विप्रकोटि सहस्त्रणामेक शिल्पी प्रतिष्ठित: ।।
शिल्पी नमस्कृत्या पूर्व देवरूप धरो यत: ।
पश्चादन्य विप्रो राजा वैश्य शूद्रो इतिक्रमात ।।

यजुर्वेद के अध्याय 16, 20 में कहा है ।

नमस्तक्षयों रथकारेभ्यश्च वो नमो नम: ।

अर्थात सूक्ष्म काम करने वाले शिल्पी तथा रथकार ब्राह्मण को सत्कार पूर्वक नमस्कार करता हूँ । विश्वकर्मा वंशी देश के विभिन्न प्रान्तों में ही नहीं बल्कि विश्व में भी योग्यता के कारण अपनी पहचान बनाए हुए हैं ।

परिचय - संस्थापक स्वर्गीय श्री रामेश्वर सोनी पांचाल

सच्चे मानव की कथनी और करनी में अंतर नहीं होना चाहिए ! व्यक्ति दूसरों से जो उम्मीद करता है उसे खुद आत्मसात करे ऐसे विचार रखने वाले श्री रामेश्वर सोनी पांचाल का जन्म लोहार ( पांचाल ) परिवार में पिता श्री गणपत जी सोनी व माता श्रीमती कावेरी बाई के घर मध्यप्रदेश के जिला इंदोर के ग्राम भगोरा में दिनांक 8 मई 1928 को हुआ ! विद्यार्थी जीवन में ही आपने राऊ में श्री शारदा बाल मंडल की स्थापना की जिसके द्वारा राष्ट्रीय व देश भक्ति गीत गाकर जन जागृति का कार्य किया तथा मात्र 18 वर्ष की आयु में 1946 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो जनसेवक से लेकर महामंत्री तथा 7 वर्ष मध्यप्रदेश कांग्रेस प्रतिनिधि तथा एआईसीसी डैलीगेट जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहकर जनसेवा का कार्य किया !

22 वर्ष की उम्र में पिताजी का स्वर्गवास होने के बाद परिवार के दायित्व पूरा करने के साथ साथ स्वसमाज सेवा करते रहे ! वर्ष 1972 में मध्यप्रदेश पांचाल समाज की स्थापना की और अध्यक्ष बने ! प्रदेश में समाज को संगठित करने का कार्य किया ! साथ ही अन्य प्रदेशों में भी सामाजिक जागरूकता अभियान चलाया और प्रदेश समितियों का गठन किया ! इसी अभियान को आगे बढाते हुए 1984 में अखिल भारतीय विश्वकर्मा पांचाल महासभा का गठन किया और अहमदाबाद गुजरात में रजिस्ट्रेशन कराया ! 1984 से 1994 तक महासभा के महामंत्री रहे तथा 1994 से 2003 तक अध्यक्ष रहकर अनेकों भवनों के निर्माण कार्य संपन्न कराये और राष्ट्रीय स्तर पर विश्वकर्मा सम्मेलन व समाजिक कार्यक्रमों का आयोजन किया और समाज की प्रतिष्ठा बढाई व एक नई पहचान दी ! जिसके कारण आज समाज के लोग अपने को विश्वकर्मा कहने में गर्व महसूस करने लगे हैं !

इस अभियान के दौरान आपको अनेकों संकटों और आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पडा लेकिन कभी हार नहीं मानी और सम्पूर्ण विश्वकर्मा समाज को एक सूत्र में पिरोने का सपना टूटने नहीं दिया, समाज एकीकरण के लिए सतत प्रयास जारी रखा ! आप जवाहरवाणी समाचार के माध्यम से समाजिक समस्याओं और कुरीतियों को मुखर रूप से उठाते रहे ! जवाहरवाणी समाचार एक तरह से समाज का समाचार माध्यम बन गया जिसमें समाज की खबरें प्रमुखता से छपने लगी ! आपको विश्वकर्मा समाज को एक सूत्र में बांधने के प्रयास को साकार रूप देने के लिए लम्बी लम्बी यात्रायें करनी पडीं ! विभिन्न प्रदेशों में प्रवास के दौरान विश्वकर्मा समाज के सभी अंगों को संगठित करने के प्रयास को जारी रखा ! इसी प्रयास को मूर्त रूप देने के लिए वर्ष 2000 में समाज के सक्रिय और प्रबुद्ध लोगों को साथ लेकर अखिल भारतीय विश्वकर्मा विराट संघ का गठन कर पंजीकरण कराया ! आपने विराट संघ के प्रथम अध्यक्ष पद को सुशोभित किया तथा अंतिम समय तक लगभग 18 वर्ष निर्विरोध इस पद पर बने रहे ! वर्ष 2018 में आपने हम सब को छोडकर इस नश्वर शरीर को त्याग दिया ! विश्वकर्मा समाज हमेशा आपका ऋणी रहेगा ! आकश्मिक निधन से हुए शून्य को भरने के लिए हम सभी को एक साथ मिलकर स्व श्री रामेश्वर सोनी जी के आदर्शों पर चलकर समाज को संगठित करने का प्रयास जारी रखना होगा !

परिचय - पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वर्गीय श्री कांति भाई एम् पांचाल

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अखिल भारतीय विश्वकर्मा विराट संघ (पंजी.) की प्राथमिकताएं

वर्तमान समय में देश में विश्वकर्मा समाज के अनगिनत संगठन बने हुए हैं लेकिन उनमें से अधिकांश संगठन या तो कागजों तक ही सीमित रह गए हैं या क्षेत्रीय स्तर पर कार्यरत हैं या फिर व्यक्ति विशेष तक सीमित होकर रह गए हैं जहाँ संगठनों की कार्यकारिणी और उससे जुड़े आम सदस्यों को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया गया है और फैसले एक या दो व्यक्ति कर रहे हैं । इससे संगठनों के प्रति लोगों का लगाव और विश्वसनीयता कम हो रही है और उनकी साख गिर रही है । ऐसे संगठन दिखावा मात्र और कागजों तक सीमित रह गए हैं । अखिल भारतीय विश्वकर्मा विराट संघ का मूल उद्देश्य विश्वकर्मा समाज को संगठित करना, आपसी सहयोग और भाईचारा बढ़ाना है तथा समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने का प्रयास करना है । संगठन को पारदर्शिता के साथ नियमानुसार/ विधानानुसार सदस्यों की आम सहमति या बहुमत के फैसले अनुसार चलाकर संगठन के प्रति लोगों में विश्वास पैदा करना है । वर्तमान परिस्थियों को देखते हुए अखिल भारतीय विश्वकर्मा विराट संघ की प्रथम चरण में निम्नलिखित प्राथमिकतायें रखी गयी हैं ।

  1. संगठन को मजबूत करने के लिए अधिक से अधिक युवाओं को संगठन के साथ जोड़ना तथा उन्हें राज्य स्तर, संभाग स्तर व जिला स्तर पर अधिक से अधिक प्रतिनिधित्व देना है ।
  2. प्रमुख शहरों में प्रशिक्षण केंद्र (कोचिंग सेंटर ) स्थापित कर समाज के युवक युवतियों को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए प्रशिक्षित करना । इसके लिये अवैतनिक या वैतनिक प्रशिक्षकों को नियुक्त करना तथा इसके लिए धन की व्यवस्था करना और समाज के प्रबुद्ध और संपन्न लोगों से इस कार्य में सहयोग की अपील करना है ।
  3. विश्वकर्मा समाज के सभी वर्गों ( मनु, मय, त्वष्ठा, शिल्पी, देवज्ञ ) के शादी योग्य युवक युवतियों को एक मंच पर लाकर सामूहिक विवाह व परिचय सम्मेलनों को बढ़ावा देना ताकि योग्य युवक युवती अपने योग्य साथी का चुनाव कर सकें और शादी पर खर्च होने वाले अनावश्यक खर्चों से बचा जा सके ।
  4. समाज के जो भाई राजनीती में सक्रीय भागीदारी कर रहे हैं उन्हें प्रोत्साहन देना तथा उनके प्रचार प्रसार में यथा सम्भव सहयोग करना ।
  5. पत्र पत्रिकायें प्रकाशित कर समाज में जागरूकता लाना तथा कुरीतियों के प्रति सचेत करना ।
  6. संस्था के माध्यम से दूर दराज या ग्राम आँचल के लोगों को केंद्र सरकार व राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही लाभकारी सरकारी योजनाओं की जानकारी देना तथा लाभ प्राप्ति में सहयोग करना ।
  7. राशन कार्ड, आधार कार्ड, वोटर कार्ड, बृद्धा पेंशन, ओबीसी प्रमाणपत्र आदि प्राप्त करने में सहयोग करना ।
  8. केंद्र स्तर और राज्य स्तर पर आर्टीजन डेवेलपमेंट कारपोरेशन का गठन का प्रयास करना तथा तैयार मॉल की बिक्री सुनिश्चित कराने के लिए कार्यवाही करना तथा आर्टीजन डवलपमेंट कारपोरेशन के के पद पर किसी भी विश्वकर्मा वंशी की नियुक्ति के लिए प्रयास करना ।
  9. राज्य सभा, विधान परिषद्, स्थानीय निकायों में, राज्यपाल, राजदूतों एवं अन्य संवैधानिक पदों पर आबादी के अनुपात में विश्वकर्माओं की नियुक्ति कराने के लिए प्रयास करना ।
  10. परंपरागत व्यवसाय, निर्माण कार्य व सरकारी ठेकों में विश्वकर्माओं की भागीदारी सुनिश्चित कराने का प्रयास करना तथा तैयार माल की बिक्री सुनिश्चित कराना ।
  11. विश्वकर्माओं को गृह उद्योगों व वर्कशाप आदि के लिए आबंटन एजेंसी से निशुल्क जमीन आबंटन व ब्याज रहित ऋण दिलाने के लिए प्रयास करना ।
  12. जहाँ भी सरकार व् कार्पोरेट सेक्टर भूमि अधिग्रहण करे वहाँ किसानों को मुआबजा देने के साथ विश्वकर्माओ जिनकी रोजी रोटी भी उसी जमीन से जुड़ी है को भी पुन: स्थापित करने की योजनायें लागू कराने के लिए प्रयास करना ।
  13. सभी राज्यों व केंद्र सरकार द्वारा 17 सितम्बर विश्वकर्मा दिवस पर राजपत्रित अवकाश घोषित कराने के लिए प्रयास करना ।